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रामायण
दोहा (चम्पा रानी )
इधर उधर तन पलटते, सुनो पति महाराज । किस उच्चाट मे लग रहे, नींद न आती आज || दोहा ( सिंहोदर )
क्या रानी तुझको कहूं, बैरन हो रही रात । दिन चढ़ते कल जा करू, बज्रकरण की घात ॥ प्रणाम नहीं करता मुझको, फल इसका उसे चखाऊंगा । मै दशांग पुर को कल जाकर, चहुं ओर से घेरा लाऊंगा । इसी विचार मे अभी तलक, अय रानी मै हूं लगा हुआ । यह मन चिंता ने घेर लिया, इस कारण से हूं जगा हुआ ||
दोहा,
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होनी आगे ही खड़ी, कारण रही मिलाय । बलिहारी कुव्यसन की, बने चोर कहा जाय ॥ विद्युत अंग ने सोच लिया, हरगिज नही कुण्डल पाऊ इससे अच्छा वज्रकरण को, जाकर के समझाऊं मै ॥ सोच समझ के ऐसा मन में, विद्युत अंग सिधाया है । रात समय वज्रकर्ण को, सारा हाल सुनाया है || दोहा ( पथिक )
सिहोदर का हाल सुन घबरा गया नरेश | सावधान हो किले में, बैठा सजा विशेष ॥ सामान सभी ले दुर्ग बीच, पहरा चहुं ओर लगाया है । अब सिहोदर ने उधर आन, दल बल से घेरा लाया है ॥ जैसे तरुवर चन्दन पे, भमरे भुजग छा जाते है । ऐसे जंगी दल पड़ा देख, सब नर नारी घबराते हैं ||
मैं
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