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कल्याण भूप
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दोहा इश्क मुश्क गुफिया खुरक, द्वेष खून मद पान ।
भेद न मूखे को लगे, लेते चतुर पहिचान ।। लेते चतुर पहिचान, भेद लक्ष्मण ने सब जाना है। तेजी से नहीं पड़े कदम, यह औरत का जामा है । नक्श पड़े सब महिला के, एक बाना मर्दाना है। स्वयं रहस्य खुल जायेगा, जो भी इनको चाहना है॥
उमर छोटी बिल्कुल है, हुस्न चेहरा खुश दिल है । रहस्य कुछ पाना चाहिये सियाराम बैठे बन में, यह भी दर्शाना चाहिये।
दोहा (लक्ष्मण) सिया राम बैठे वहां, बोले लक्ष्मण लाल ।
बिन श्राज्ञा कैसे चलू, महल सुनो भूपाल । उसी समय सेवक जन को, राजा ने हुक्म चढ़ाया है। सियाराम को बुला सग ले, अपने महल सिधाया है । भोजन पान से की सेवा, और समझा पर उपकारी है। अवसर देख कुबेर पति ने, मुख से बात उचारी है।
दोहा (कल्याण राजा) चरणदास की विनती, सुन लीजे महाराज ।
परोपकारी तुम प्रभु, सभी जगत के ताज ।। बालिखिल्य है पिता मेरा, पृथ्वी नामा महतारी है। थी गर्भवती पृथ्वी रानी, सुन लीजे व्यथा हमारी है। आया एक गिरोह डाकुओ का, सहसा बालिखिल्य बाँध लिया । नहीं लगा पता कई मासों तक, दुर्गम नग बीच तलाश किया ।