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भीन्तनी
भोलनो दोहा
अटवी मे एक भीलनी कर रही मार्ग साफ | कभी कहती है हे प्रभो । कटे किस तरह पाप ॥
चौपाई
शब्द भीलनी के सुन राम । निज मन मांही विचारा ताम || भीलनी जपे जिनेश्वर नाम । क्या सत्संग हुआ इस धाम || या जाति स्मरण हुआ ज्ञान । कारण कोई मिला शुभ आन । क्या सुन्दर करती गुण गान । सुन जिन नाम टले सब मान ॥ दोहा
देख राम को भीलनी, हर्पित हुई अपार ।
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चरणो में आकर गिरी, सब को किया जुहार ॥ एक वृक्ष तले बैठा करके, फिर पानी उन्हें पिलाया है । जो चुनकर रक्खे थे पहले बेरो पर हाथ जमाया है || मीठो की परीक्षा कारण कुछ, निज दॉतो से काटती थी ॥ फिर छांटछाट अच्छे अच्छे, सियाराम लखन को बांटती थी ॥
दोहा
सादर प्रेम के वह बेर खा, मिला अपूर्व स्वाद ।' जनता को वह प्रेम सब, आज तलक है याद ।।
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वह बेर नहीं एक अमृत था, सब तीन लोक में बढ़ करके । शुभ है पांचो रस दुनिया मे, पर इन मे था बढ़ चढ़ करके ॥ अब बाप बेटे मे नफरत है, तो औरो से फिर प्रेम कहां । एक दूजे में जहां प्रेम नहीं, वहां वर्तेगा सुख क्षेम कहा || जो दशा आज भारत की है, किसी बुद्धिमान से छिपी नहीं । चोटों पर चोटे सहते है, फिर भी है आंखे मिची हुई ||