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रामायण
हर वार उसने है कहा, सब ही यह कुछ ले लीजिये। . धर्म को छोडू नहीं, रस्ता मुझे दे दीजिये ॥ कौन कारण से बता फिर, जान का दुश्मन बना। समझ ले अब भी नहीं, मैदान में होगा फना ॥
- दोहा बातों बातों मे बढ़ी, दोनों में तकरार । सुभटों को कहने लगा, सिंहोदर ललकार ।।,
. दोहा (सिंहोदर ) पकड़ो इस अज्ञानी को, बोले शब्द कठोर । धंसो एकदम दुर्ग मे देखें सबका जोर ।।
प्यारे जी सुनते ही सब, सूर एकदम रूरे। उस तरफ सुमित्रानन्द, नाहर मम घूरे ॥
दोहा लक्ष्मण को जब पकड़ने गये एकदम शूर ।
उधर सुमित्रानन्द को, चढ़ा जोश भरपूर ।।'' दल मे कूद पड़ा ऐसे, जैसे कोई शेर बकरियो में । बसन्त अन्त जैसे ग्रीष्म, ऐसे ही अनुज क्षत्रियों में ॥ . . . होगया साफ मैदान कई, मर गये और दल भाग पड़ा। फिर बोल दिया नृप ने हल्ला, और हस्ती ऊपर आप चढ़ा ॥ जैसे नट नाचे बाँसों पर, करता कमाल अपने फन में । ऐसे ही लक्ष्मण वीर बली, करता कमाल गर्जा रण में ।। देख जौहर नृप दहलाया, लक्ष्मण होद्दे पर कूद पड़ा। , मुश्के बांध लई राजा की, दल बाकी सब बेकार खड़ा॥