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रामायण
दोहा (विद्युतअङ्ग) अय प्यारी ! तेरे लिये, तजे मात और तात । लाखों की दौलत करी, तुझ कारण बरबाद ॥
लाल हीरे रत्न प्यारी, सार सब तुझको दिया । विश्वासघातिन बनके धक्का, आज क्यों मुझको दिया । अब बिना तेरे ठिकाना, और न मुझको कहीं। क्षुधा निवारण के लिये, पैसा कोई पल्ले नहीं । वेश्या कहे तू कौन है, बक-बक खडा क्यो कर रहा । रोनी बना सूरत अभागी, नेत्रों में जल भर रहा ।। बोला अय प्यारी देख मैं, वह ही तो विद्युत अंग हूँ। करती थी जिससे प्यार अब, कुछ ख्याल कर मै तंग हूं। वेश्या ने सोचा कि कहं, रानी के कंडल चोर ला। खुद ही मारा जायगा, सब दूर टल जाये बला ।
दोहा (वेश्या) क डल कानो के ले आ, यदि चाहे संयोग । नहीं तो दिल मे सोच ले, सारी उमर वियोग ॥
विद्युत अंग फिर बोले विद्युत बिना, द्रव्य के कैसे कुंडल आयेगे। यह बातें अद्भुत सुनकर तेरी, प्राण हमारे जायेगे। ना पास हमारे कौड़ी है, तुमने यह और सवाल किया। तन धन यौवन सब छीन आज, किस तरह मुझे पामाल
किया।