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वज्रकरण सिहोदर
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निश्चय मैंने किया तुम्हे, वह कब खातिर मे लायेगा। अंगूठी कर से हटा कभी नहीं, आपको शीस निवाएगा।
दोहा पिशुन पुरुष के वचन सुन, जल बल हो गया ढेर । क्रोधित सिंहोदर हुआ, जैसे सूखा शेर ॥ सिंहोदर कहने लगा, अब आ पहुँची रात। ' प्रातः काल जाकर करू, वज्र कर्ण की घात ॥ सिंहोदर जाकर लगा, करने भोजन पान । किसी पुरुष ने कह दिया, वज्रकणे को पान ।।
(रामचन्द्र पथिक से) बोले राम वह कौन मनुष्य, जिस गुप्त भेद सब पाया है। चनकणे के पास पहुंच जिन, सभी हाल बतलाया है ।। ज्ञात तुम्हे है तो यह भी, कहदो, हम सुनना चाहते है । बोला पथिक सुनो यह भी, हम सभी खोल दर्शाते है।
दोहो (पथिक) कुन्दन पुर मे सेठ के, सुन्दर यमुना नार। विद्युत अंग पुत्र हुआ, शशीवदन सुखकार ।। , शशिवदन सुखकार सेठ, सुतै नगर उज्जयनी आया । रूप कला नहीं पार द्रव्य, उज्जयनी खूब कमाया ॥ कामलता वेश्या देखी. रग-रग से इश्क समाया। खोटी संगत मे पड़ करके, सारा माल गंचाया।
. दोहा पास जिसके न पैसा, मेल फिर उससे कैसा। , . लगी दिखलाने पौला, वर्ताव देखः विद्युतअंगा, ...
वेश्या से ऐसा बोला।