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वज्रकरण सिहोदर
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पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत धारण करते है । और सातो कुव्यसन तजे तन मन धन से पर कार्य करते है | देव गुरु शुभ धर्मशास्त्र, चारो की पहिचान करे । रत्नत्रय को धार, श्री मुनि सुव्रत को प्रणाम करे || नवरत्न पदार्थ धार हृदय, अरि दुष्ट कर्म सब दूर करें । हिंसा दोष बताते है, इस पर भी जरा विचार करें || मदिरा मांस खाने वाले, अधो नरक मे जाते है । जो करें शिकार अनाथों का, वह जन्म मरण दुख पाते हैं + दुख होता है दुख देने से, यह सर्वज्ञों का कहना है । कोई जैसा बोवे बीज, उसी का वैसा ही फल लेना है |
गाना नम्बर ३६
( मुनिराज का राजा वज्रकरण को उपदेश देना ) तर्ज नाटक की
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तुम सत्य धर्म को पालो, हरदम जान जान जान |टेर । जो सत्य धर्म को पाले, वह नरकादिक दःख टाले । जहाँ खड़े हैं तिरछे भाले, सत्य तू मान मान मान ||१|| यह राज पाS सुत भ्राता, नही संग किसी के जाता । फिर परभव मे दुःख पाता, सुन धर कान कान कान ॥२॥ जो विमुख' धर्म से होता, वह सिर धुन धुन कर रोता । कुछ मतलब सिद्ध नहीं होता, सुन धर ध्यान ध्यान ध्यान ||३|| जिन क्रोध मान मढ़ मारा, और अष्ट कर्म को द्वारा 1, हुआ शुक्ले ध्यान सुखकारा, मिले निर्वाण बाण बाण ||४||
दोहा
राजा ने ऐसा सुना, आत्म धर्म अनूप | सम्यक्त्य शुद्ध धारण करी. बैठा हृदय स्वरूप ॥