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भामण्डल का अपहरण
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पुत्र लायक होय जिन्होके, पिता क्यो जाय समर को । शक्ति हीन अविनीत हो तो, जीना किस अर्थ कुमर को॥
दौड़ अभी रण क्षेत्र जाऊं, पकड़ अतरङ्ग को लाऊं। शीश पर हाथ चढ़ाओ, निश्चिन्त होकर पिता अयोध्या मे आनन्द उडाओ ॥
दोहा आज्ञा दी भूपाल ने, मन मे खुशी अपार । सेना ले कुछ संग मे, चले राम बलधार ।। शत्रु संग जा संग्राम किया, म्लेछ समर मे खाक हुए । अतरंग म्लेच्छ का तेज व गौरव, राम के आगे राख हुए। जब धनुष बाण टंकार किया तो मानो बिजली आन पड़ी। भगी फौज सब अतरंग की, कुछ करके आर्त ध्यान खड़ी॥
दोहा विजय हुई श्री राम की, गया जनक क्लेश ।
प्रसन्न चित्त हो राम की, सेवा करी विशेष ॥ श्री राम का पराक्रम देख जनक, निज रानी को समझाने लगा। सुन आज विदेहा पुण्य तेरा, मन चाहा मानो आन जगा । श्री रामचन्द्र की समता का, संसार मे कोई शूर नहीं। सब गुण धारक अति सुख दायक, फिर पुरी अयोध्या दूर नहीं ।।
दोहा करी सगाई पुत्री की रामचन्द्र के साथ । मिथिला वासी हर्ष से, सभी झुकाते माथ ।।