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रामायण
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दोहा
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पास बुलाई रानिये, बोले नृप समझाय । राज-काज दे राम को, मैं संयम लू जाय ॥ जो-जो मन के भाव आप, वह प्रकट सभी कर सकती हो । यह जन्म-मरण संसार अनित्य तज संयम भी धर सकती हो । श्रेष्ठ मुहूर्त सभी ज्योतिषी, देख हाल बतलाते हैं । कल रामचन्द्र को राज ताज दें, हम संयम चित्त लाते हैं 11
दोहा
सुनते ही नृप के वचन, रानी सब हैरान । क्योकि पति वियोग का समय दृष्टि लगा आन ॥
देख विरह नृप को सब रानी, यथा योग समझाती है । निज राग प्रेम दिखलाने को, नयनो से नीर बहाती हैं ॥ जब समझ लिया राजा आगे न पेश हमारी जाती है । तब शेष मौन हो गई, कैकयी ऐसे वचन सुनाती है ॥ दोहा (कैकयी)
नम्र निवेदन है पिया, संयम लेना बाद । वर भंडारे है मेरा, स्वयं करो प्रभु याद ॥ स्वयं करो प्रभु याद गये थे आप स्वयंवर घर में । पंक्ति से थे बाहिर मैं लाई, वरमाला जब मचा घोर संग्राम अड़े, जब शूरे सभी करी सहाय मैं उठा होल था, आप के आन
गाना नं० १५
कर
समर जिगर में |
मे ।
में ॥
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( कैकयी का दशरथ से कहना) बहर कव्वाली अक्ल उस दिन मेरे स्वामी. गई थी कर किनारा है ।
अरिने सारथी के बाण जब सीने में
मारा है |१|