________________
२८४
रामायण mmmmmmmnxnnnrrrrrrrrrrrr
दोहा पांच महाव्रत धार लो, पांच ही सुसतिमान ।
राजन् ? गुप्ति तीन कर पहुंचो पद निर्वाण ॥ सुना भूल गुण संयम का, वैराग्य मजीठी रंग चढ़ा। चरणों में करी प्रणाम फेर, ईशाण कोण की तरफ बढ़ा ।
आभूषण सभी उतार भूप ने, केश लूच कर डारे हैं। मुखपति मुह पर बांध मुनि हो, चार महाव्रत धारे है। दीक्षा उत्सव के बाद सभी जन, निज-निज कारोबार लंगे। तज कर झूठा संसार मुनि तप संयम के व्यवहार लगे। इस तरफ अवध का राज भरत नीति से खूब चलाते हैं। बनवास में फिरते उधर, राम सिया लक्ष्मण हाल बताते हैं ।
दोहा फिरते हैं नित्य चाव से, मन में अति हुलास ।
चित्रकूट में पहुंच कर, किया राम ने वास ॥ शुभ समय बिताते है अपना, सन्ध्या और आत्म शोधन में, श्रीराम माहात्म्य प्रगट हुआ, इस कारण सारे लोकन में। फिर वहाँ से भी चल दिया राम, जब सीया का चित्त उदास हुआ। अब ऋतु बसन्त भी आ पहुंची, सारे जंगल में घास हुआ।