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दशरथ दीक्षा
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महारानी और वजीर सभी, पुत्र आदि समझाते है। प्रभु उमर आखिरी में लेना, यदि सयम लेना चाहते हैं !
दोहा (दशरथ) रानी उम्र संसार की, इसका आदि न अन्त ।
उम्र शुरू करू धर्म की, लहुं मोक्ष आनन्द ।। लहुं मोक्ष आनन्द तजू, अब ख्याल सभी इस घर का। इस संसार का सम्बन्ध समझ, जैसे है मणि विषधर का। कारीगर ले काढ़ इस तरह, जैसे कि फूल कमल का । तजू कषाय भजू समता, जैसे स्वभाव चन्दन का । । । दौड़ सभी संयोग अनित्य है, ज्ञान गुण इसका नित्य है। करू आत्म निर्मल है, पाकर केवल ज्ञान-मोक्ष सुख भोगू सदा अटल है ॥
चौपाई सत्यभूति मुनि पास सिधाये। चरण कमल मे शीश झुकाये ।। बोले भव दुख से प्रभु तारो। जन्म मरण का कष्ट निवारो।
दोहा नृप का जब अणगार ने, देखा दृढ़ विश्वास। तब ऐसे मुनिराज ने, किये वचन , प्रकाश ।। .
चौपाई---(सत्यभूति) आश्रव रोक संवर को धारो। बंध जान निर्जरा विचारो ॥ खम दम सम, त्रिक हृदय लायो । तप जपकर अरि कमे उड़ाओ ॥