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राज्याभिषेक
दौड़
ध्यान मेरा चरणन मे, नहीं जाने दू' बन में । चलो अब देर न लावो, सिंहासन पर बैठ मुझे भी
राज्याभिषेक दोहा
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ड्योढ़ीवान बनाओ ||
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उसी समय श्रीराम ने करी इशारन बात | सीता ने कलशा नीर का दिया राम के हाथ || भरत वीर के शीश राम ने, कलशा तुरत दुलाया है । कहा अवधपुरी का नाथ, भरत राजा यह शब्द सुनाया है ॥ यह मंत्रीश्वर भी साक्षी है, जो राज्याभिषेक किया हमने | जो, भ्रम भूत सब दूर हुआ, अब तो स्वीकार किया तुमने ॥ अवधपुरी मे जाकर मन्त्री, उत्सव अधिक रचा देना । और खुशखबरी यह मात-पिता को जाकर प्रथम सुना देना || सब अवधपुरी का मिलजुल कर, नीति से अपना राज करो । कोई कष्ट न कर पड़े हमे, दो खबर ना चित्त उदास करो ॥ विनय जो कुछ हुआ माता सो क्षमा सभी अब कर देना । हम चलने को तैयार अगाड़ी, हाथ शीस पर धर देना || प्रणाम हमारी माताओं को, क्षेम कुशल सब कह देना । तज कर आर्तध्यान शुक्ल, शुभ ध्यान हृदय में घर लेना ॥
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दोहा
प्रेम भाव से देर तक हुई परस्पर बात ।
माता ने लाचार हो धरा शीश पर हाथ ||