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बनवास कारण
२४५ ~~~ Amrimar nan ~ vxxx wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww नेत्र जल वर्षा से अति सीता को मानो तर किया। चहुं ओर से आपत्तियो ने, जैसे आकर घर किया। रोक मन को थाम दिल की, बात तब कहने लगी। अव्यक्त और गद्गद् शब्द, स्वर धार जल बहने लगी।
दोहा ( कौशल्या ) क्यो वधु शृगार सब तन से दिये उतार ।
नमस्कार आकर करी, हुई किधर तैयार ॥ हार गल से लालो का, किस कारण तैने उतार दिया। क्यो सच्चे मोती हेम जड़ित, साड़ी को आज विसार दिया ।। नजर नहीं आता दामन जो, जवाहरात से जड़ा हुआ। वह कहाँ दोतर्फी मस्तक खीचे, था चन्द्रमा चढ़ा हुआ ।। कहाँ पायजेब नूपुर झुमके, हीरे जिनमे थे अड़े हुवे। मनमोहन माला पंचरंगी, दाने जिनमे थे जडे हवे॥ निर्मल व्योम शशि जैसे तारागण मे दिखलाता था। ऐसे ही गुल बदन तेरा मुख, गहनो से मुस्काता था ।
दोहा (सीता) क्या बतलाऊँ मै तुझे, माता मुख से भाष । जला हुआ जो दूध का, फूक लगाता छास ।।
__छंद (सीता) बालपन मे भ्रात की, मैंने जुदाई है सही। फेर विद्याधर पिता को, ले गया गिरि पर कही ।। दुख नहीं पहिला मिटा और ही गम आ मचा । लाचार मेरा पिता ने था स्वयंवर व्याह रचा ॥ दुख स्वयंवर का कहूँ, शक्ति यह जिह्वा मे नहीं। चरण स्पर्श आपके, कुछ पुण्य बाकी था कहीं।