________________
रामायण
Con
vvv
मेरे लाल अक्ल के तोते उड़े तमाम । लगे कलेजे बाण कुवर मत ले जाने का नाम ।।टेर।। आंखो का तारा, जान जिगर से प्यारा। कभी आज तलक मै किया न तुझको न्यारा ॥ गुल बदन चाँद का टुकड़ा राज दुलारा । पुत्र ! माता को दुख सागर में डारा ।। मेरे लाल शुक्ल क्यो छोड़ चले बन धाम । लगे कलेजे बाण, पुत्र मत ले जाने का नाम ॥१॥ राम-लीजो माता प्रणाम झुकाऊँ सिर को।
तजता हूँ चौदह वर्ष तलक इस घर को । मेरी मात करू बनवास गुजारा है। कर्तव्य पालन के लिये मात बनवास हमारा है। है विनयवान् मम भ्राता भरत सुत्त तेरा। उठ गया समझ यहां से अन्न पानी मेरा ।। मानिन्द पंछी दुनिया का रैन बसेरा। वही शुक्ल मनुष जिसने नहीं गौरव गेरा ॥ मेरी मात धर्म ही एक सहारा है। कर्तव्य पालन के लिये मात बनवास हमारा है ।।
दोहा (राम) माता पुत्र की लीजिये, हृदय से प्रणाम । नीरस मोह को त्यागकर, कीजे आत्म काम ।।
___ छंद
पीठ फेरी राम ने, इतने में सीता आगई। पकड़ लगा हृदय सासु ने, गोद में बैठा लई ॥