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वन प्रस्थान
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नर्क कुण्ड पर नारी और पर पुरुष दुःखो का सागर है। . शुक्ल अन्य शिक्षा मेरी, शुभ सदाचार सुख आगर है ।। मूल विने शुद्ध प्रेम ऐक्यता, सब सुख इसमे समा रहे । स्वाधीन सभी सृष्टि उसके, यह त्रिक जिस हृदय जमा रहे ।। मैं पुत्रवती हूँ समझ लिया, मैने सब आज परीक्षा से । पुण्य प्रवल तुम्हारा होगा, बेटा मेरी शिक्षा से ॥ मेरी सेवा मे भरत पुत्र है, आपना फिकर कोई करना। इस भव परभव सुखदाता है, बेटा परमेष्टी का शरना ॥
दोहा सार भरी शिक्षा सुनी, माता की जिस वार राम लखन सीता हुवे, तीनो खुशी अपार ।।
वन प्रस्थान
दोहा रंग ढंग सब सोच के, हुए राम तैयार।
शोकाकुल चहुं ओर से, आ पहुँचे नरनार ।। वस्त्र शस्त्र पहिन राम ने, धनुष बाण निज हाथ लिया। इस कष्ट समय मे संग राम के, लक्ष्मणजी ने प्रस्थान किया। फिर माता कैकेयी के चरणो मे, तीनो ने सिर नाया है। और अन्त दिलासा दे सबको, श्रीराम ने कदम बढ़ाया ।
दोहा छोड़ राज और ताज को, चले राम बनवास । नरनारी सब ले रहे, लम्बे-लम्बे श्वास ।।