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रामायण
सब हुए। उदास अवध में, वापिस आते हैं और रोते हैं। हृदय में प्रेम उबाल उठे तो, अश्रुओं से मुह धोते हैं । मुश्किल से चरण धरें आगे, है प्रम राम मे अड़ा हुआ वह पा तो रहे हैं अवध पुरी, पर मन भ्रमता में पड़ा हुआ।
छन्द प्रणाम करके बाद तृप को, वार्ता सारी कही । हाल सुन राजा की जो थी अक्ल सब मारी गई ।। भरत को अति प्रेम से नप फर समझाने लगे। विघ्न मत डालो कुमर, सब भाव बतलाने लगे। मान लो मेरा कथन, हित शिक्षा समझाऊँ तुझे । कर उऋण मुझको धरो, सिर ताज बतलाऊँ तुझे ।।
गाना नम्बर ३७ (राजा दशरथ का भरत को समझाना) 'लाल मेरे बेटा धारो सिर पे यह ताज ॥टेर।। 'मानो वचन हमार। कर्त्तव्य पहिला तुम्हारा । देवो मुझको सहारा धारू संयम आज || राम वन को सिधारा संग लक्ष्मण प्यारा। सबने यही उचारा देवो भरत को राज ||२|| यह सूर्य वंश कहाया, सबने बचन निभाया । तुझे ख्याल न आया, सारा बिगड़े यह काज ||३|| मस्तक तिलक सजावो, अर्ति दूर न साओ। शुक्ल ध्यान ध्यावो, भाषा श्री जिनराज ||४||
दोहा ( भरत) लाख कहो चाहे पिता, नहीं धारू सिर ताज। मै चाकर बन के रहूँ, राम करेगें राज ॥