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रामायण .
~. ~~ ~ ~~imun ... यह राज ताज दे रामचन्द्र को, आप मुनिव्रत ले लीजे । श्री राम लखन सीता को लाऊं, आज्ञा मुझको दे दीजे ॥
दोहा कैकेयी के सुन कर वचन, बोले दशरथ भूप । अक्ल ठिकाने आ गई, सोची युक्ति अनूप ।।
दोहा ( दशरथ) बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय । व्यवहार यहाँ बिगड़े सभी, अशुभ कर्म बन्ध जाय ।।
गाना नं० ३८ (राजा दशरथ का कैकेयी को उपालम्भ देना) गजब तूने किया किसका, यह किसको हक दिलाया है।
मै जिसके दर्श से जीऊं, उसी का दिल दुखाया है ॥१॥ समझे कर मांगती वरदान, तू क्यों हो गई नादान । '
अन्त पछतायेगी क्यों'आज, गौरव को गिराया है॥२॥ नियत यह हो चुका सब कुछ. तिलक श्री राम को होगा।
अवध की शुद्ध भूमि में, यह क्यो उल्लू बुलाया है ॥ ३ ॥ भरत को राज्य देने से, नियम सब भंग होते है।
तू मंगल में अमंगल करके, क्यो हृदय जलाया है ॥ ४ ॥ तेरा अपयश मरण मेरा, नहीं इसमें कोई संशय । आज व्यवहार को तज कर, 'शुक्ल' को क्यों लजाया है ॥५।।
'.. दोहा श्राज्ञा ले निज नाथ की, चली राम के पास ।' . भरत मंडली और कैकेयी, हो रहे अति उदास'।।