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राम शिक्षा nnnnnnnnnnn nnnnarrrrrrrrrror
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कर्तव्य पालन करो सदा, हृदय से यह चाहता हूं। है प्रजा पुत्र दशरथ की, मै भी सुत कहलाता हूं।
दौड़ रक्खो सभी एकता, ध्यान शुभ सत्य विवेकता । एक दिन वह श्रावेगा, इस भव परभव लाभ गौरव, दुनिया में छा जावेगा।
दोहा ग्राम धर्म की व्यवस्था, शुद्ध करो सब कोय ।
नगर धर्म कहा दूसरा, प्रेम सभी संग होय ।। धर्म तीसरा राष्ट्र लिये, अर्पण सब कुछ करना चाहिये। यदि कोई विपत्ति आ जावे तो देश के हित मरना चाहिये ।। चौथे पाखण्ड को काट छांट, व्रत रक्षा करना अच्छा है ।
जो भी इनसे विपरीत चले, वह निर्बुद्धि या बच्चा है ।। , निज कुल के गौरव को देखो, यह धर्म पांचवा सुखदाई। , सब त्यागी और गृहस्थ का,इसी में समावेश दोनों का ही। समूह धर्म छठा बतलाया, क्योकि इसमें शक्ति है। जिसने इसको कर दिया भंग, समझो उसकी कमबख्ती है। फिर संघ धर्म का पालन करना, सप्तम वुद्धिमानी है। और किसी अंश मे श्री संघ की, आज्ञा भी प्राप्तवाणी है। अष्टम है श्री श्रुत धर्म, क्योकि यह ज्ञान खजाना है। बस इसके पालन रक्षण से ही, सर्व सुखों का पाना है ।। सम्यकत्व चरित्र धर्म नवमा, सब कर्ममैल को धोना है। विष क्रोध मानमद काट फैककर, अमृत फल को वोना है। जो विपरीत चले इन धर्मों से, न उन्हे कभी सुख होना है अज्ञान तिमिर मे फंसे हुओ को, रहे शेष वस रोना है ।। .