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भरत का राज्य
rrrrrrrrrrma मुश्किल से वापिस करके फिर, आगे चरण बढ़ाये है। इस प्रम विरह रूपी सागर मे, सब नर नार समाये हैं ।
दोहा प्राम-ग्राम के अधिपति, विनती करे अपार । प्रभु यहां कृपा करो, आपका सब घर बार ॥ श्रीराम सबको समझा कर, आगे को बढते जाते हैं।
सब ग्राम नगर पुर पाटन तज, रजनी जहां आसन लाते है। अब इधर अवध मे दशरथ नृप ने, भरत पुत्र बुलवाया है। और राज भार देने को नृप, मंत्रीश्वर ने समझाया है।
भरत का राज्य
दोहा राज्य न लेवे भरत जी, आक्रोशे निज मात । सियाराम और लखन का, विरह सहा नही जात ।।
चारित्र लेने के लिये, भूपाल शीघ्रता करे। हरबार समझाया भरत नहीं, ताज अपने सिर धरे ॥ यत्न सब निष्फल हुआ, कुछ काम बन आया नहीं। सुत भी गया दशरथ कहे, मुनि व्रत मुझे आया नहीं । परिवार सब दुख मे पड़ा, रानी का हाल खराब है। राम लक्ष्मण के बिना, सुत भरत भी बेताब है। अब भूप ने सोचा कि वापिस, राम को बुलवाय ल। सोच कर युक्ति कोई, चारित्र मे चित्त लाय लू॥