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भरत का राज्य
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छन्द मानना भाई भरत को, तात के मानिन्द सभी। . मेरा भी हृदय सर्द सुन सुन, करके होवेगा तभी ।।
वचन यह कह कर चरण, श्री राम ने आगे धरा। सामन्त मन्त्री जन सभी के नेत्रो में अति जल भरा ॥ प्रेम हृदय मे भरा सब संग ही संग में चल रहे। ' विनती न मानी राम ने, सौ सौ खुशामद कर रहे ।।
दोहा चलते चलते आ गई, नदी बह रहा नीर । फेर राम कहने लगे, बैठ नदि के तीर ।।
गाना नं० ३४ । ( राम का मंत्रीगण एवं सामन्तगण को समझाना) बहुत आगये दूर मन्त्री, - लौट अवध जाओ ।।टे।। चापिस रथ ले जाओ मन्त्री, मत ना घबराओ । तुम समस्त राज परिवार को, जाकर धीरज बधाओ ।।१।। सामन्त होश कर मत रोवो, न नीर नैन लावो । चापिस तुम सब जाओ, अयोध्या हुक्म मेरा पाओ ।।२।।
दोहा समझा कर यो राम जी, बढ़े नाव की ओर । निपाद राज अति खुश हुआ, जैसे चन्द्र चकोर ।।
गाना नं. ३५ आन प्रभु ने दर्श दिखाये सफल कर्म मेरे, हां सफल कर्म मेरे। भिरन भिरन आ रही बेडी, गाय रही है महिमां तेरी।