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रामायण
तल्लीन कही नवमी शक्ति, सब कार्य सिद्ध कर देती है। बस और तो क्या उस प्राणी को, शिव रमणी तक वर लेती है।। धर्म समाज ज्ञानहानी का, जिसके दिल मे खेद नही। ऐसे छद्मस्थ प्राणी में, और पशु में कोई भेद नही। सर्वज्ञ अवधिमनःपर्यय ज्ञानी, प्टिवाद पूर्व धारी। इनके विच्छेद होने पर समदृष्टि, को होता दुःख भारी ।। उक्त साधनो के वियोग का, जिस प्राणी में संचार नही। इन शक्ति हीन मूढात्म का होता कहीं बेड़ा पार नहीं । एक रूपा शक्ति कही ग्यारहवी, बरते सब व्यवहारो में। तन जन क्या कारोबार रूप बिन, आब नहीं घर बारो में ।
दोहा (राम) प्राप्तवाणी हृदय धर, लगो सभी निज काम । अवध पुरी मे तुम सुखी, हमको सुख वन धाम ॥ निर्भयता से अवध पुरी मे, भरत भूप की शरण रहो।
और जैसा राम भरत वैसा, इसमें न रंचक फरक लहो ।। चस न्याय पथ पर डटे रहो, साचो उपाय नित्य वृद्धि का । शुभ उद्यम शील बनो सारे, अमोघ शस्त्र यह सिद्धि का।
दोहा शिक्षा दे श्रीराम ने, किया गमन में ध्यान । जन समूह ने भी किया, संग ही संग प्रस्थान ।।. मकना तीस रखेच लोहे को, अपने संग मिलाता है । ऐसे ही अवध वासियो का दिल, राम संग ले जाता है ।। हम कैसे हाल कहें सारा, न शक्ति कलम जबां में है। शुद्ध क्षीर नीर सम प्रम राम, प्रजा में सहज स्वभावें है ।