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रामायण
अब विरह यह सामने, पतिदेव का आता नजर। साथ न छोड़ें पिया का, फिर मिले कब क्या खबर ।
दोहा (कौशल्या ) लगे घाव पर अय सिया, नमक दिया बुरकाय । मरती को मारा मुझे, जो तू भी बन जाय ।। जो तू भी बन जाय, फेर मै कैसे करू गुजारा। दख सागर में लीन, गमो का चले जिगर पर आरा ।। सुख दुख की मै कहुँ बात, किससे कर वधू विचारा । 'मरने भी न कोई देता, मर जाऊं मार कटारा ।।
गाना नं० २३ ( राम कौशल्या विलाप) कर्म है खोटे मेरे, ऑसू बहाना हो गया। सुत वधू दोनो चले, सूना जमाना हो गया ॥१॥ क्या कहूँ तकदीर आगे, पेश कुछ चलती नही । रात दिन पुत्र जुदाई, जी जलाना हो गया ॥२॥ तू वधू मत जा बनो मे, मान ले मेरा कथन । राजधानी महल सब, गम का खजाना हो गया ।३। घोर दख बन का, सिया तुझसे सहा नही जायगा। मानती नहीं क्या अशुभ, कर्मो का आना हो गया ।४!
दोहा (सीता) पति देव बन बन फिरें, मैं रहूँ बैठ आवास।
आज्ञा मुझको दीजिए नम्र निवेदन सास ॥ गाना नं० २४ ( सीता का कौशल्या से कहना) पति का साथ छोड़ यह मेरे से हो नहीं सकता। कोई कर्त्तव्य से चुके तो सुकृत बो नहीं सकता ॥१॥