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रामायण
दौड़
जहां तक मेरा दम है, राम को फिर क्या गम है । नहीं जाने दूं' बन मे राम करेंगे राज रहूंगा, मैं सेवक चरणन मे ॥
दोहा
दहकती ज्वाला की तरह, देख अनुज का रोष । शीतल वचनो से लगे, देन राम सन्तोष ॥
राम-अय लक्ष्मण कुछ सोच समझ, मन मे क्यो रोष बढ़ाया है । अत्यन्त खुशी का समय आज, यह अपने कर मे आया है ॥ मातपिता की आज्ञा पालें, मुख्य कर्तव्य हमारा है । करे सेवा तन मन से जिनकी, अनुचित क्रोध तुम्हारा है | जैसा राम भरत वैसा, लक्ष्मण या वीर शत्रुघ्न है । वचन पिता का करे न पूरा, तो हम भी कृतघ्न है ॥ यह राज खुशी से भरत वीर, को मैं लक्ष्मण ! देजाता हूँ । कर्तव्य अपना पले पिता ऋण टले, यही दिल चाहता हूँ || गाना नं० २८
(रामचन्द्र का लक्ष्मण को समझाना )
तर्ज - ( लगी लौ जान जाना से तो जाना ही मुनासिब है )
राज्य के वास्ते अपना वचन, हरगिज न हारेंगे । करेंगे सैर वन वन की, पिता का ऋण उतारेंगे ॥१॥ रोष को दूर कर मन से, सुनो लक्ष्मण मेरे भाई । मात कैकेयी के चरणों में, यह अपना शीश डारेंगे ||२|| प्रतिज्ञा पालने वाले, हुए सब सूर्य वंशी है । इसी में जन्म धारा तो बचन हम भी न हारेंगे ||३||