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. 'रामायण
___.', ... दोहा सुन बाते सब अनुज की, रानी मन हैरान ।
रहना इसने है नहीं, समझा दिल दरम्यान ।। मौन आकृति देख मात की, लक्ष्मण ने प्रणाम किया। श्रीरामचन्द्र के पास गए, फिर चरण कमल में ध्यान दिया । प्रेम भाव से रामचन्द्र जी, सीता को समझाते हैं। बनवास के दुख भयानक हैं, सब भेद खोल दर्शाते हैं ।
दोहा (राम) ऐ सीते मेरी तरफ जरा कीजिये गौर ।
महलो मे बैठी रहो वनखंड में दुख भोर ।। वन खंड में दुख घोर देख भय जान निकल जावेगी। जनकपुरी मे मात तुम्हारी, सुन के घबरावेगी। कहा मान अय जनक सुता, जाकर के पछतावेगी। चौदह वर्ष का लम्बा, काल वहाँ दारुण दुख पावेगी ।
गाना नं०३१ (रामचन्द्र का सीता को समझाना) बैठी राज महल सुख भोगो, बन खंड मे दुख पावोगी। जहाँ गर्जत हैं सिंह बघेरे, दारुण दुख तूफान घनेरे॥ शयन जमीं का रात अंधेरे, कैसे प्राण बचाओगी ॥१॥ ज्येष्ठ भाद्रपद धूप करारी, वर्षा नदी गहन अति भारी।
गिरी गुफा दुर्गम दुखकारी, देख-देख दहलांवोगी ॥२॥ इतर फुलेल न अटवी घन में भोजन मन वांछित कहां वन में। चमक-दमक यह रहे न तन में, फिर क्या यत्न बनाओगी।३। आदम की न मिले शक्ल है, कहीं खारा कही कड़वा जल है। यह सख वहाँ नहीं विल्कुल है, कैसे दिल बहलाअोगी ॥४॥