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रामायण
सब देव खुशी होते हैं, जैसे देख सुमेरु नन्दन वन | बस ऐसे हम सब को होगा, बन में माता श्रानन्द अमन ॥ दोहा ( लक्ष्मण )
सूर्यवंशी मात मै, क्षत्राणी का शेर ।
अब इस मुख से क्या कहू बतलाऊंगा फेर ॥ बतलाऊंगा फेर अयोध्या, जब वापिस आऊंगा । कष्ट जो होगा सिया राम का अपने सिर उठाऊंगा ॥ तेल बिन्दु सम नाम राम का, जग मे फैलाऊंगा । तब ही मात सुमित्रा का मै नन्दन कहलाऊंगा ॥
दौड़
शीस जब तक धड़ पर है, राम को कौन फिकर है । चरण जहाँ-जहाँ धरेगे, बड़े बड़े भूपति मात चरणों में आन गिरेगे ।
छंद
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पीठ ठोकी मात ने, सिर पर धरा शुभ हाथ है फिर जा के चरणन में गिरा, जहाँ थी कौशल्या मात है | सिर झुका कर अनुज ने जो बात थी सारी कही । सुन दुखी रानी हुई, कुछ होश न तन की चेत जब मन को हुआ, लक्ष्मण से यो कहने की धार भी, आंखो से तब बहने
दोह (कौशल्या )
रही ॥
लगी ।
लगी ॥
गोला टूटा गजब का, मेरे ऊपर प्रान । राम संग तू भी चला, जाते नहीं प्राण ||