SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५६ रामायण सब देव खुशी होते हैं, जैसे देख सुमेरु नन्दन वन | बस ऐसे हम सब को होगा, बन में माता श्रानन्द अमन ॥ दोहा ( लक्ष्मण ) सूर्यवंशी मात मै, क्षत्राणी का शेर । अब इस मुख से क्या कहू बतलाऊंगा फेर ॥ बतलाऊंगा फेर अयोध्या, जब वापिस आऊंगा । कष्ट जो होगा सिया राम का अपने सिर उठाऊंगा ॥ तेल बिन्दु सम नाम राम का, जग मे फैलाऊंगा । तब ही मात सुमित्रा का मै नन्दन कहलाऊंगा ॥ दौड़ शीस जब तक धड़ पर है, राम को कौन फिकर है । चरण जहाँ-जहाँ धरेगे, बड़े बड़े भूपति मात चरणों में आन गिरेगे । छंद 1 पीठ ठोकी मात ने, सिर पर धरा शुभ हाथ है फिर जा के चरणन में गिरा, जहाँ थी कौशल्या मात है | सिर झुका कर अनुज ने जो बात थी सारी कही । सुन दुखी रानी हुई, कुछ होश न तन की चेत जब मन को हुआ, लक्ष्मण से यो कहने की धार भी, आंखो से तब बहने दोह (कौशल्या ) रही ॥ लगी । लगी ॥ गोला टूटा गजब का, मेरे ऊपर प्रान । राम संग तू भी चला, जाते नहीं प्राण ||
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy