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वनवास कारण
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दासी सेवक संग सहेली, उस बन में फिर-फिर अकेली। कहा मान सुन्दर अलबेली नाहक दुख उठाओगी ॥५॥ मात पास तुम रहो पियारी, श्री जिनधर्म करो सुखकारी । सोचो मन मे जनक दुलारी, 'शुक्ल' परम सुख पाओगी ॥६॥
दोहा शिक्षा सुन श्रीराम की, सिया ने किया विचार । , विनय पूर्वक फिर इस तरह, बोली वचन उचार ।।
· गाना नं० ३२ सीता का श्रीराम को कहना यह क्या बनो का दुख पिया, अन्तक मुझे हन जायेगा। जो भी मुख से कह चुकी, मेरा न वह प्रण जायेगा ।११ राज मन्दिर और दास दासी, सब यहां रह जायेगे। राख मट्टी जिस्म चमकीला, मेरा बन जायगा ।। संग की सरवी सहेली, मात पितु सासु श्वसुर ।
काल फॉसी दे लंगा संग, कौन साजन जायेगा ।३३ धर्म मेरा, है पति के.संग, सुख दुःख में रहूं। इससे हुआ विपरीत तो, दुख मे यह तन भुन जायगा ॥४॥ तन है सेवक हर मनुष्य का, प्रेम इससे जो करे । एक दिन देगा दगा बस, बन यह कृतघ्न जायगा ॥१॥ दुःख पति! या सुख का मिलना, पूर्व कर्म अनुसार है। सागे कर्म पुरुषार्थ आ जब सामने तन जायगा ॥६॥
दोहा राम जहाँ वहाँ पर सिया, इसमे भेद न जान । जावोगे यदि छोड़ कर, तो नहीं बचे प्राण ॥ सीता का प्रस्ताच सुन, हुए राम लाचार । खड़े-खड़े चुपचाप हो. ऐसा किया विचार ।