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राजताज
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वचन को हारू नहीं, जो आत्मा का धर्म है। कर दिया वेहाल मुझको, इस करज के दाम ने ॥४॥ तोड़ दू व्यवहार सारा, न्याय कैसे छोड दू। प्रसिद्ध हम सबको किया, दुनिया में जिस सुत राम ने ॥शा तीर बीन छलनी किया, मेरा कलेजा नार ने । अब 'शुक्ल' मैं क्या करू, युक्ति न आती सामने ।।६।।
दोहा । सोच फिकर मे इस तरह, हुआ भूप लाचार ।
इतने मे आकर झुके, चरणन पद्म कुमार ।। श्रा नमस्कार की चरणो में, फिर मुख पर नजर टिकाई है। बैठे कुछ आज उदास भूप, सब चमक दमक मुआई है ।। यह देख पिता का हाल, राम का हृदय कमल मुआया है। दो हाथ जोड़ नम्रता से, यो शीतल वचन सुनाया है ।।
दोहा ( रामचन्द्र ) . कारण आर्तध्यान का, बतलाओ महाराज ।
विकट समस्या आ गई, कौन सामने आज ॥ कौन सामने आज आपके मन मे बड़ा फिकर है। आज्ञा कर दई भंग किसीने, या भय और जबर है ।। शूरवीर रणधीर आपकी, जाहिर तेग समर है । कौन फिकर है पिता आपको,जब तक राम कमर है ।।
. दौड़ भेद दिल का बतलाओ, जो आज्ञा हो फरमावो । जन्म तुम घर. लीना है, पिता रहे जो दुखी फेर,
धिक्कार मेरा जीना है ।।