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राजताज
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छन्द--(भरत) शोभता मुझको नहीं, यह ताज अपने सिर धरू। धिक्कार चुल्लू भर कहीं पानी मै न जाकर मरू॥ चाकर का चाकर मै बनू राजो का राजा राम है। आज्ञा उन्हो की सर धरे, ये ही हमारा काम है ।। और जो मर्जी पिता आज्ञा, मुझे दे दीजिये। ताज शोभे राम सिर, बेशक अभी धर दीजिये। इस अयोध्या राज की, मुझको पिता इच्छा नहीं। दीक्षा लेने के सिवा मानू कोई शिक्षा नहीं ।।.
___ दोह (राम) राम कहे भाई सुनो, बनों न तुम नादान ।
कुल के गौरव पर जरा, करना चाहिये ध्यान ॥ तेरा सहज हिलाना सिर, यह मुझको नहीं गंवारा। प्रतिज्ञा हो भंग पिता की, कुछ तो करो विचारा॥ आदिनाथ से चला आ रहा, शुद्ध कुल वंश हमारा। आप से बुद्धिमानो को है काफी ज़रा इशारा ।।
गाना नं०१६ (राम का भरत को बहना) बचन पिता का भाई, तुम मानों जरूर ॥टेर।। सेवा कर-कर हारे, सारी उमर गुजारे। पिता का फर्ज उतारे, तब भी होता न पूर ॥ पिता का धर्म बचाओ, सिर पे ताज टिकाओ। जल्दी करके दिखावो, होवें दुःग्न सब दूर ॥२॥ तुमने हुक्म यह टाला, फिर कहाँ संयम पाला । यह क्या मुख से निकाला, होके गुस्से मे चूर ॥३॥