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रामायण
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दोहा ( दशरथ )
बेटा तेरे वचन सुन, मिला मुझे श्राराम | जैसा तेरा नाम है, वैसा ही शुभ काम ||
बेटा ! मैं बड़े-बड़े जंगों में नहीं घबराया था ।
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इन भुजा बलों से शूरवीर, योद्धों का मान घटाया था । अब उल्ट फेर एक आन पड़ा, कोई रास्ता मुझे न पाया है । और उसी दुःख ने अय पुत्र मेरा यह हाल बनाया है ॥
दोहा
खाना पीना भाता नहीं, उड़ गये मेरे होश । सोच रहा तजबीज मै, बैठा यहां खामोश ॥
छंद
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रानी बनी तब सारथिन उस घोर युद्ध
कैकयी राणी का जब था, स्वयम्वर मण्डप रचा । पहनाई वरमाला मुझे, तब घोर युद्ध वहाँ पर मचा ॥ तीर खा मम सारथी, धरणी गिरा मुझय के । में आय के ॥ शत्रु भागे मैदान से सब, रण विजय मै कर लिया । देख पराक्रम हो प्रसन्न रानी को, था तब वर दिया || वचन कर रखा था, मेरे पास वर मांगा अभी । जिह्वा नहीं आगे को चलती, कैसे बतलाऊ सभी ॥ राज देवो भरत को मांगा है, वरं यह दुख मुझे । ऋण मेरा उतरे नहीं, पुत्र मै बतलाऊ तुझे ॥
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दोहा
मन मे बड़ी उमंग थी, लेऊ' संयम धार । 1. इस झगड़े ने आनं-कर, किया मुझे लाचार ॥