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________________ २३० AAAAAAAA 1^1^ रामायण wwwww Ams दोहा ( दशरथ ) बेटा तेरे वचन सुन, मिला मुझे श्राराम | जैसा तेरा नाम है, वैसा ही शुभ काम || बेटा ! मैं बड़े-बड़े जंगों में नहीं घबराया था । www इन भुजा बलों से शूरवीर, योद्धों का मान घटाया था । अब उल्ट फेर एक आन पड़ा, कोई रास्ता मुझे न पाया है । और उसी दुःख ने अय पुत्र मेरा यह हाल बनाया है ॥ दोहा खाना पीना भाता नहीं, उड़ गये मेरे होश । सोच रहा तजबीज मै, बैठा यहां खामोश ॥ छंद 1 रानी बनी तब सारथिन उस घोर युद्ध कैकयी राणी का जब था, स्वयम्वर मण्डप रचा । पहनाई वरमाला मुझे, तब घोर युद्ध वहाँ पर मचा ॥ तीर खा मम सारथी, धरणी गिरा मुझय के । में आय के ॥ शत्रु भागे मैदान से सब, रण विजय मै कर लिया । देख पराक्रम हो प्रसन्न रानी को, था तब वर दिया || वचन कर रखा था, मेरे पास वर मांगा अभी । जिह्वा नहीं आगे को चलती, कैसे बतलाऊ सभी ॥ राज देवो भरत को मांगा है, वरं यह दुख मुझे । ऋण मेरा उतरे नहीं, पुत्र मै बतलाऊ तुझे ॥ 1 ' दोहा मन मे बड़ी उमंग थी, लेऊ' संयम धार । 1. इस झगड़े ने आनं-कर, किया मुझे लाचार ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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