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सीता स्वयंवर
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दोहा अवधपुरी मे खुशी से, पहुंची जब बारात ।
स्वागत करने आगये, नरनारी मिल साय ।। मंगल गायन सब सखियो ने, सीता महल पहुंचाई है। धन्य कौशल्या भाग तेरे, सबने दयी आन बधाई है ।। दिल खोल दान तकसीम करो, नृप ने दिया हुक्म वजीरो को।। फिर प्रीति भोजन दिया भूप ने, मुफलिस और अमीरो को ॥
गाना नं० ११ मिल कामन झगड़ा डाल रही, खोलो कंगना बोली मार रही टेर। सोचो मति तुम कंगना खोलो, समझ तुम्हे अवतार रही। धनुष की चाप नही कंगना है, रघुवर से हंस नार रही ।।१।। चातुर नार कई सखियो से, कहे वृथा कर तकरार रही। कगना खोल दिया रघुवर ने, यूं ही बहस घड़ी चार रही ॥२॥
दोहा दशरथ नृप ने एक दिन, उत्सव दिया रचाय । मंगलीक शुभ कारणे, कलशे जल भरवाय ।। भेज दिये रनवासो मे, कलश पहिला सेवक के हाथ दिया। शेष कलश एक एक कर, दासी जन को बांट दिया ॥ निज निज चेटी ने, निज निज, रानी सिर कलश डुलाया है। यह देख हाल पटरानी, कौशल्या को भामर्ष आया है।
दोहा ( कौशल्या ) मुझे कलश भेजा नही, भेजा औरो पास ।
अपमान एक मेरा हुआ, बाकी रही हुलास ।। कहने को तो मै पटरानी हूँ क्या. इज्जत मेरी खाक रही । भेज दिया सब ही को जल पहिला हक नृप को याद नही ।।