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रामायण
प्रश्न सुनकर नरनाथ का, तब बोले मुनिराय । पूर्व भव की कथा तुम, सुनो श्रवण चित्तलाय । "राजा दशरथ का पूर्व भव वर्णन"
दोहा (मुनि) सेवापुर वर नगर मे, भावन सेठ सुजान । पत्नी उसकी दीपिका, सुनो लगाकर कान ॥
छन्द उपस्ति नामक तिनके सुता, साधु की जिस निन्दा करी । जीव नृप वह ही तुम्हारा, अब सुनो आगे चरी। चन्द्रगिरी भूपाल के, धन्य श्री शुभ नार थी। वरुण नाम का सुत हुआ, संगति मिली सुखकार थी। सेवा करे साधुजनो की, ध्यान दो शुभ नित्य रहे । दी छोड़ खोटी संगति, सब आत्मा को जो दहे ॥ उत्तर कुरुक्षेत्र मे, मरकर हुआ फिर युगलिया। फिर तीन पल्य की भोग आयु अन्त में सुरपद लिया ।
दोहा (मुनि) पुष्कलावती नामक पुरी, पुष्कलावती मंझार ।
नन्दी घोप राजा भला, पृथ्वी नामा नार। नन्दीवर्धन इक हुआ पुत्र, सुरगति से चलकर आया है। दे राज्य पुत्र को नन्दी घोष ने, तप संयम चित्त लाया है । श्री यशोधर नामक मुनि पास, संयम व्रत ले अनगार हुआ। नन्दीवधन भी पीछे से, श्रावक बारह व्रत धार हुआ।
दोहा गृहस्थ धर्म लेकर गया, पंचम स्वर्ग मंझार । आयुष्य क्षय कर देवकी, लिया मनुष्य अवतार ।। ।