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रामायण
सीता भामण्डल मिलन दोहा
कर्मों की विचित्रता, सुनों भूप धर ध्यान । भामंडल सीता जन्म, युगल पने पहिचान ॥
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छन्द ( मुनि )
बहन भाई आन जन्मे, यह विदेहा नार के । भाई को सुर हर ले गया, था द्व ेप दिल में धार के ॥ रख इसे वैताड़ पर फिर, सुर गया निज धाम को । तूने उठा कर सुत वही, निज हाथ से दिया बाम को ॥ पूर्व जन्म का सुत तेरा, सरसा यह इसकी नार थी । तुम बने निग्रन्थ मुनि, पुष्पा वती भी लार थी ॥ अंत तुम सुरपुर गए, सुख बैंकिय भोगे अति । छोड़ सुरपुर रथनुपुर, आकर बना चंद्रगति ॥ संयोग वश आकर बनी, पुष्पावती पटनार है । भामण्डल बना यह सुत तेरा, वास्तव में जनक कुमार है ||
दोहा
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भामएल ने कथन सब अध्यवसाय निर्मल हुआ, पूर्व जन्म का हाल सुन, हो सचेत कहने लगा, हू' महा पापी चांडाल अधर्मी दुष्ट आत्मा मेरी है । जो वांछा मै संयोग अनुचित, दैव ने बुद्धि फेरी है ॥ आ गिरा चरणो में सीता के, बोला अविनय माफ करो । मैं हूँ अपराधी बहिन तेरा, मुझ दुष्ट पे कोई दंड धरो ||
सुना लगाकर कान । जाती स्मरण ज्ञान || गिरा मूर्छा खाय । मस्तक जरा हिलाय |