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दशरथ का वैराग्य
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चौपाई पूर्व पाठी आगम विहारी, चार ज्ञान तप पूर्व धारी॥ पांच सुमति और पर उपकारी, प्राणी मात्र के हितकारी ।
दोहा जनता ने जब सुना, आए मुनि महान् ।
हर्षसहित पहुंचे सभी, सुना धर्म व्याख्यान ॥ परिवार सहित गए दशरथ नृप, मुनि जन को शीश नवाया है जब सुना धर्म व्याख्यान अति, आनंद ज्ञान मे आया है ।। चंद्रगति भ्रमण करण, परिवार सहित था सैर गया। श्री मुनि दर्शन अर्थ अवध मे, वापिस आते ठहर गया॥ थी ज्ञान की वर्षा लगी हुई, मुनि भेद खोल दर्शाते हैं। कुकर्म संग हो मूढ फिरे, यह जीव बहुत दुःख पाते हैं । हो काम मे अंध फिरे भटकते, राग मोह चित लाते हैं। देख मनो गम भुके लाभ, ना होने पर पछताते है । यह चिंतामणि मनुष्य तन पाया, फेर हाथ नहीं आयेगा। अचक्षु कर्ण रस घ्राण, अनंते चक्र मे रुल जायेगा ॥
दोहा पुद्गल परिवर्तन सुना, गए भव्य घबराय । कुमति छोड़ सुमति ग्रही, सम्यक्त्व दिल ठहराय ।। उपदेश बाद भूपाल ने, प्रश्न किया तत्काल । पूर्व जन्म का हे प्रभो ? कृपानिधि कहो हाल ।।