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सीता भामण्डल मिलन
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पूर्व महा विदेह क्षेत्र मे, बैताड्य गिरी सविशेष । उत्तर श्रेणी मे भला, शशीपुर नामक देश ।
विद्युतलता नारी तिसके । एक सूर्ययश पुत्र जन्मा, अति शूर वीर योद्धा जिसके । सिंहपुरी के वज्रनयन, नृप से राजा का जग हुआ । वहाँ विजय रत्नमाली पाई, और वज्रनयन नप तंग हुआ ।
दोहा (मुनि) सिंहपुरी को घेर कर, अग्नि लगा लगान । पूर्व मित्र इक देव आ.लगा देन यो ज्ञान ।
दोहा (मुनि) भूरिनन्दन तू हुआ, पूर्व जन्म मे भूप ।
पड़ विलासिता मे तजा, तूने धर्म अनूप ।। मुनि से मांस का त्याग किया, किन्तु कुसंग ने घेर लिया। भंग किया तूने व्रत अपना फिर ढंग उसी तरह गेर लिया। मैं राज पुरोहित था तेरा, अब आगे हाल सुनाता हूँ। स्कन्द राय के हाथ से फिर, मै मरण वहाँ पर पाता हूं। हस्ति यूथ मे जन्म लिया, पर कर्म कही ना तजते है। भूरिनन्दन के भृत्यो द्वारा, वहाँ भी कैद मे फंसते हैं। मैं नायक किया हस्ति चमु मे, फिर होनी ऐसी बनती है। अन्य एक नृप से, भूरिनन्दन की लड़ाई ठनती है ।
दोहा उस घोर युद्ध मे मै तजे, हस्ति योनि के प्राण ।
पुण्योदय से फिर हुआ, इसका करूं बयान ।। उसी भूरिनन्दन के थी, गांधारी नाम की पटरानी। मैं उसी के जाके पुत्र हुआ, जो कहलाती थी महारानी॥..