________________
२१४
रामायण rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr
प्रेम नहीं अब रहा उन्हें, मैं गणना में शुम्मार नहीं। इस बेइज्जति से मरना अच्छा जीना मुझको दरकार नहीं।
दोहा तुच्छ हृदय हो नारी का भर लाई जल नैन ।
गद्गद स्वर रानी कहे उलट पुलट मुख बैन । इतने मे आ गया भूप, सब हाल देख घबराया है। बोले कहो कारण क्या रानी, मरना पसंद क्यों आया है।। गद्गद् स्वर से क्यों बोल रही, नैनो मे जल भर लाई हो । क्या हुआ तेरा अपमान, या किसी दुःख ने आज सताई हो ॥
( दशरथ का रानी से पूछना) गाना नं. १२ (तर्ज-जव तेरी डोली-) महलों में शोक छाया, तेरे क्यो आज रानी। गुस्से का कोन कारण, अए मेरी राज रानी ॥१॥
जागो या सो रही हो, व्याकुल क्या हो रही हो। मुख जैसे कि रो रही हो, किस गम मे हो दीवानी ॥२॥ मंगल है तेरे घर म, तू लीन है किस फिकर मे इसका सुनु जिकर मै, कैसी है गम कहानी ॥३॥
आते यह ध्यान छोड़ो, भ्रमता से मुख मोड़ो। उत्सव मे मन को जोड़ो, वृथा क्या मन समानी ॥४॥
दोहा ( कौश० ) जान यूझकर दुःख दिया, फिर बनते अनजान ।
भेज कलश सब को दिए, किया मेरा अपमान ।। यह लो जल महारानी जी, इतने मे आ बूढा बोला। मट लिया हाथ दशरथ नप ने, महारानी के सिर पर डोला ।।