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सीता स्वयम्बर
सीता खेल रही थी उससे, टूटे भी कई वर्ष हुये। एक आप क्यो रोते है, बाकी फिरते सब हर्ष हुये ॥ सस्कार ये बुकसपने के, अन्तिम असर दिखाते है । बस एक ओर हो मार्ग से, क्यो ज्यादा पोल खुलाते हैं ।
इतना सुन कर परशुराम, क्रोधानल मे भबक पड़े। विघ्न देख हटा लक्ष्मण को, राम सामने आन खड़े ।। हाथ जोड़ श्रीरामचन्द्र जी यू बोले शीतल वाणी। महाराज ये लक्ष्मण बच्चा है, आप क्षमा के है दानी ॥ वह पिनाक आपका जीर्ण था. बच्चो के खेल मे टूट गया। फिर यह भी बात पुराणी है, और सहज में पीछा छूट गया ।
आपसे वीर महापुरुषो को, नया और मिल सकता है। यह षड्यन्त्र है रचा किसी ने, बकने दो जो बकता है । परशु ऊपर राम तले चरणो मे लिपटा रहता है। हम विलीन आपके आत्म मे, निज गुण तो एक सरीखा है ।। है प्रकृति का भेद सभी ज्ञानी के लिये परीक्षा है ।।
दोहा
श्रीराम के वचन से परशुराम हुआ शान्त । समझ लिया षड्यन्त्र ये, झूठ सभी एकान्त ।। पुण्यवान प्राणी के संमुख, विघ्न सभी काफूर बने । महाकोधी भी शान्त हुआ, षड्यन्त्रियो ने शीश धुने ।