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भामण्डल का अपहरण
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गाना न०३ मच रही अवध में धूम, खुशियां घर घर मे । टेर। हिल मिल नारी गावे राग है, धन्य तुम्हारे आज भाग है । धन्य अयोध्या भूप, खुशियां घर घर मे ॥ १ ॥ गाना गाने आई अप्सरा, नकाल और आ गये मसखरा । तननतान तन धम, खुशियां घर घर मे ||२|| राज्य अधिकारी देत इशारा, अब क्या देरी बजे नकारा । और बाजिन्न अनूप, खुशियां घर घर मे ॥३॥ बज रही नौबत खुशी के बाजे, खुशी होवे सब मित्र राजे । ऐसा बंधा स्वरूप, खुशियां घर घर में ॥४॥
दोहा अद्भुत है सब ने सुना, जनक सुता का रूप । देखन आते चाव से, कइ तन पुण्य अनूप ।। पुरी अयोध्या मे सुनी नारद महिमा रूप । किन्तु मन में जचा नहीं, मुनि के सत्य स्वरूप ॥
(नारद स्वगत विचार) नारद ने सोचा रामसे बढ़कर, सीता रूप नही पास कती। मेरा विचार तो ऐसा है, वह राम के मन नहीं भा सकती॥ ऐसा न हो कि बिना खबर, कहीं विवाह अचानक आन पड़े। और देख कुरूप राम को फिर, करना न आर्तध्यान पड़े।
दोहा (नारद) मिथला नगरी जाय कर, देखू सीता अंग।
यदि तुल्य जोड़ी हुई, तभी विवाह का ढङ्ग । तभी विवाह का ढङ्ग बने, नहीं विघ्न डाल कोई दूगा। यदि कोई ना समझा तो मै बुरा स्वयं बन लूगा ।।