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रामायण
बिना चिल्ला चढ़ाये जो पीछे हटू, तो मै दशरथ का समझो कुवर ही नहीं ।
दोहा ( राम) ठीक कथन लक्ष्मण तेरा, है तुझको शावास ।
क्या आफत ये धनुप है, चलकर देखें पास ॥ क्षत्रिय है हैरान सभी, जा धनुप पास घबराते है। सब ग्रीवा कर नीची अपनी, शर्मा कर वापिस आते हैं ।। विद्याधर का धनुप समझ, लक्ष्मण नहीं कोई मामूली है। यदि हुए यहां से वापिस हम तो, लोक हंसाई शूली है।
दोहा (राम) सिद्ध सभी कार्य बने, पढो मन्त्र नवकार।
धनुप मात्र यह चीज क्या, बने बज्र भी तार ॥ धीर विक्रम गज ललित गति से, चले राम सुखदानी है। पीछे चले सुमित्रा नंदन, जोड़ी क्या लासानी है ।। उद्धतपना नही कहीं तन में, धीर गति से चलते है ।
और देख-देखकर नृप चंद्रगति, आदि हृदय मे हंसते हैं। नहीं चढ़ा सके ज्या *विद्याधर, यह लड़के क्या कर लेवेगे। चाप देख भयभीत भाग, कोई अंग ही तुड़वा लेवेगे। कर रहे हंसी मन मानी सभी, न लक्ष्य राम कुछ करते है। परवाह न ज्यों गजराज करे, जव श्वान भोकते ही रहते है। देख अनूप शरासन मन मे, राम अति होते हैं ।
और सार मन्त्र उच्चार धनुष के, सम्मुख हाथ बढ़ाते है ।। वृद्धि गत पुण्य प्रताप से, अग्नि ज्वाला सब काफूर हुई।
और नाग रूप धारी यनों की, क्रोधानल सब दूर हुई। *ज्या जीवा