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रामायण
लिये राम के राजकुमारी, और कोई देखूगा । चलू अभी मिथिला नगरी, छिन मात्र मे पहुंचूगा ।।
दौड़ मुझे है काम राम से, खयाल नहीं किसी काम से । सन्द मैं खुद का जूगा, तमो विवाह होने दूंगा नहीं उल्टा सब कर दंगा ।।
दोहा
मुनि रंगीले चल दिये, पहुंचे मिथिला जाय । वही बात वही ध्वनि, धंसे महल के माय ॥
छन्द उस पुण्य तन को देख कर नारद ने मुख अंगुली लई। क्या नूर है या हूर, या मेरी अक्ल मारी गई ।। देखा भरत सब घूम कर. कहीं रूप इस सदृश नहीं । क्या जन्मी आकर देव कुमारी, रूप मनुष्य का नहीं । इन्द्राणी भी शर्मावती, यह रूप राशि देख कर । शोभेगी अति विमान में, यह जायेगी जब बैठ कर ।। दूर से ही देख आश्चर्य चकित है मन मेरा। दू" आशीष जाकर पास, पुत्री की अक्ल देखू जरा ॥
दोहा (नारद-रूप) पीली ऑखे और भवें, अजब रङ्ग सब जान ।
पीले ही सिर केश है, दाढ़ी अद्भुत शान ।। पड़ी नजर जब सीता की तो, डर के भीतर भाग गई। हा ! खाई मारी दौड़ो पकड़ो, ऐसा रोती राग गई।