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रामायण
सब जोड़ी देख प्रसन्न हुए, घर घर में खुशी मनाई है। श्री रामचन्द्र को झूम झाम, जनता सब देखन आई है। नर नारी मुख से कहते थे, यह सीता पुण्य निशानी है। नल कुबेर सम मिले राम, वर जोड़ी बड़ी लासानी है। श्री रामचन्द्र के शुभ तन मे, इक महा आकर्षण शक्ति थी। क्योकि पूर्वभव मे इन्होने, की तप संयम भक्ति थी। मुग्ध थे मिथला के नर नारी श्री राम की सुन्दरताई पर। शुभ लक्षण छवि निराली को, लख न्योछावर सुखदाई पर । सब नार परस्पर कहती है, है राजकुमर कैसा ज्ञानी। चन्द्र बदन तन कोमल है, स्वरूप बना क्या लासानी। खलकत अड गई बानरो मे, महलो मे देख रही रानी॥ नजर घूम गई पनिहारिन की, भरना भूल गई पानी। रूमाल अंगूठी और नारियल, राम को दई निशानी है। सीता का रिस्ता किया तुम्हे, नप ने यह कहा जबानी है ।। कह देना नप दशरथ से, सब आपकी मेहरबानी है। सब कष्ट मिटा मम रैयत का, नहीं आप सा को सुखदानी है ।।
दोहा राम विदा होकर चले, जन्म-भूमि की ओर । मात प्रतीक्षा कर रही, जैसे चन्द्र चकोर ।। पुरी अयोध्या में आकर, पितु मात को शीश निमाया है। आशीश दिया निज पुत्र को, दम्पति का मन हर्षाया है ।। जनक भूप ने दशरथ से सम्बन्ध का सब व्यवहार किया । दशरथ नृप ने मित्र का जो, था कथन सभी स्वीकार किया।
दोहा मिल कर घर घर नारियां, बांटे मोदक थाल । मेवा और मिष्टान्न संग, ऊपर दिये रूमाल ||