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रामायण
PARAN
दोहा लगा पलीता मुनि जी, हुये नींद में, लीन ।
भामंडल यूं तड़फता, जैसे जल बिन मीन ॥ । राजकुमार का देख हाल, राजा रानी घबराये है। ,
वैद्य ज्योतिषी और सयाने, राजा ने बुलवाये हैं ॥ . ., देख सभी ने बतलाया, नहीं इसको कोई बीमारी है। किन्तु है ख्याल कहीं जमा हुआ, यह पाया समझ हमारी है ।
छन्द तड़प भामंडल रहा, मोह लीन बीमारी हुई। ' देख कर माता-पिता को, वेदना भारी हुई ।। । । पुत्र के मित्रों से भी पूछा, हाल सब महाराज ने।। बोले दिखाया चित्र था, कलह प्रिय मुनिराज ने ॥ सुनते ही गुण उस कामिनी के, होगया बेताब है। समझाया बहुतेरा मगर, आई नहीं वह आब है ।। सब ठीक समझा भूप ने, नारद मुनि का काम है। औषधि वही बतायेंगे, खोजूसही किस धाम है।
, दोहा ।' चन्द्रगति भूपाल झट, पहुंचे नारद पास । -, ' मन्द-मन्द मुस्कराय कर, ऐसे बोले भाष ॥ ,
। छन्द (चन्द्रगति ) . , ..., सिर झुकाया चरण में महाराज कृपा कीजिये। ' श्रालस्य निद्रा के बहाने, छोड़ कर मन दीजिये ।। किस कुवारी का चित्र यह, जिसको लाये आप हैं। कृपा तुम्हारी से मिटेगे, जो किये सन्ताप है ।।