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रामायण mmmmmmmmmmmmmrrrrrrrrrrrrrr arm wwwm
दोहा-(जनक विचार) आश्चर्य मे लीन हो, मन मे खिन्न महान् । सोया था निज महल मे, यहाँ सब और सामान।
__छन्द (जनक) सोया था मै निज महल में, कौन ले आया मुझे। सोऊँ या जागूं हे प्रभु, या स्वप्न कोई आया मुझे। नारी कहाँ पुत्री कहाँ, सेवक कहाँ वह दास है। अपना नहीं आता नजर, बैठा पर कोई पास है।
छन्द (चन्द्रगति ) चन्द्रगति कहने लगा, श्री जनक से कर जोड़ कर । कर दो क्षमा अपराध मम, कहता हूं मद को छोड़ कर ॥ पुत्री सुनी है आपके, सीता कुमारी नाम है। भामंडल से परणाओ उसे, केवल यही बस काम है।
दोहा (जनक) पुत्री निश्चय है मेरे, सुनो भूप कर गौर । दशरथ सुत को दे चुका, छुटी हाथ से डोर ।। स्वयं करो विचार मणि अब, शेष नाग के सिर पर है। दे नहीं सकता और किसी को, मस्तक जब तक धड़ पर है। अब हाथ सिंह की मूछों पर, सोचो तो भूप कौन डाले। ऐसा कहो कौन दुनिया मे, कहे काल को आ खाले ।
दोहा सुनी बात जब जनक की, हुये क्रोध में लाल । चन्द्र गति कहने लगा, आंखें लाल निकाल ।।