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सीता स्वयम्वर
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उस गीदड़ की धमकी से, मै जरा न भय खाऊंगा। रखता हूं व्यवहार नहीं, तब सुता उठा लाऊंगा ।। देखूगा बल दशरथ का, जब सुत व्याहने आऊंगा। मानिन्द गरुड़ के भूचर नप, सर्पो पर छा जाऊंगा।'
दौड़
दिखा शक्ति दशरथ की, देख मेरे भुजबल की। सोच करले निज दिल से, सीता का जो विवाह होगा
___ तो होगा भामंडल से ॥
दोहा (जनक) बुद्धिमानी आप की, देख लई भूपाल । खाली वादल की तरह, बजा रहे हो गाल । क्या योधापन दर्शाया है, चोरी से उठाकर लायेंगे। कभी बतलाते है दशरथ को, अपनी शक्ति दिखलायेगे। बार वार क्या दुनियां सब, चोरो का धोखा खाती है। कोई शक्ति और बुद्धिमानी की, बात नज़र नहीं आती है।
दोहा तेजी आई भूप को, किन्तु जरी तमाम ।
सोचा ढंग वही करे, बने जिस तरह से काम ।। चन्द्रगति:बिगड़ जायेगा बातो में, क्यों कि क्ष त्रय कहलाता है। कर चुका सगाई लड़की की, नरमाई से समझाता है ।। कार्य से है मतलव मेरा, कोई खेलू इस से चाला है। देवाधिष्ठित-धनुष हैं दो, यही उपाय एक आला .