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सूर्यवंशावली
शास्त्र कला की थी ज्ञाता, पतिव्रता धर्म बजाती थी । लिये पति के करू न्योछावर, प्राण तलक यह चाहती थी ।
दोहा
उत्तर दिशा भूपाल का लगा होन संग्राम | दक्षिण आक्रमण किया, एक शत्रु ने आन ॥ एक शत्रु ने आन तुरत, रानी ने करी चढ़ाई | शत्रु को पराजय करके, अपने महलो मे आई ॥ भूप नधुक ने जब रानी की, सभी बात सुन पाई । देख वक्र व्यवहार, दुराचारण नृप ने ठहराई ||
दौड़
फौज कम नहीं हमारी, युद्ध में गई क्यों नारी । बेइज्जती का कारण है, कहे नपुंसक हमको दुनिया, रानी गई लडन है ||
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दोहा
कुछ विरुद्ध रहने लगा, रानी से महाराय । भ्रम छेड़ने का रही, रानी सोच उपाय || एक समय महाराज को, उत्पन्न हो गई दाह । औषधि ना कोई लगे, दिल मे दुख अथाह || रानी किया विचार भ्रम, राजा का दूर उटाऊ' अभी । निश्चल हो वीजाक्षरो से, किया नमोकार का जाप तभी ॥ पतिव्रता यदि पूर्ण हॅू, कोई अन्य पुरुष नहीं बांछा । तो मम हाथ फेरने से, पति देव मेरा होवे अच्छा ॥
दोहा
रानी ने यह बात कह, फरसा नृप का अङ्ग । रोग तुरन्त भागा सभी, गरुड़ से जिमे भुजंग ॥