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रामायण
चौपाई कोई मोक्ष स्वर्ग गया कोई। सूर्यवश बड़ा जग जोई ।।
पुरी अयोध्या अणरन्य राजा । प्रजा का सारे सब काजा।। अनन्त रथ दशरथ दो सुत याके | पुण्यवान सुत दोय पिता के । राज तिलक दशरथ को सजाया । अणरन्य ने संयम चित्त लाया।
दोहा अगरन्य और अनन्त रथ, सहस्रांशु नृप साथ । लीन शुक्ल शुभ ध्यान मे, सफल जाये दिन-रात ॥ एक मास की आयु मे, दशरथ को मिला ताज । चंद्र कला सम बढ रहा, दिन प्रति दल बल साज ॥ अस्त्र शस्त्र आदि सभी, बहत्र कला का ज्ञान । विनय विवेक विचार सब, पण्डित चतुर सुजान ॥ यौवन वय प्राप्त हुवा, शूरवीर बलधार ।
दाता भोक्ता और गुणी, वसुधा यश विस्तार ॥ दर्भ स्थल का भूप सुकौशल, अमृत प्रभा रानी जिस के । इन्द्राणी अवतार अनुपम, अपराजिता सुता तिस के । दशरथ नृप को परणाई, जहां उत्सव हुवा अति भारी । प्रेम परस्पर दम्पति मे, जैसे के समझ क्षीर वारि ।।
दोहा त्र सुभू भूपाल के, सुशीला रानी जान ।
सुमित्रा पुत्री भली, चौसठ कला निधान । विवाह हुवा जिसका दशरथ से, भूप ने प्रीति दान दिया । ग्राम प्रान्त सेवक जन भी, देकर उत्तम सम्मान किया । पूर्व पुण्य प्रगटा आकर, दिन-दिन प्रति वृद्धि पाता है। उधर ज्योतिपी से रावण, निज हाल पूछना चाहता है ।।