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रामायण
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दोहा (चन्द्रगति) बोला अय रानी पुत्र विन, सुना था सब राज । पुण्य उदय तेरा हुआ, आज सधे सब काज ॥ इसके समान नही रानी, कोई नजर दूसरा आता है । भामंडल नाम धरे इसका, बस यही मेरे मन भाता है ।। दाबी कला विमान की, झट रानी महलों में पहुंचाई है। पुत्र जन्मा महारानी ने, सब जगह यह बात फैलाई है ।। दिल खोल भूप ने दान दिया, और उत्सव अधिक मनाया है। वंदी छोड़ दिये सारे, सब जन समूह हर्षाया है ।। लगा पुत्र वृद्धि पाने, दिन दिन अति कला सवाई है। अव हाल सुनो मिथिला का, जहाँ कर्मों ने चाल चलाई है ।।
(मिथिला में शोक )
दोहा जनक भूप की दासियां, रही चंडोल x डुलाय ।
कोई देती लोरियां, कोई रही मुलाय ।। कोई रही मुलाय, धाय जब दूध पिलाने आई। लड़की है प्रत्यक्ष किन्तु, नहीं देता कुमर दिखाई ।। उसी समय घबराय दासियाँ, सब एकत्र हो आई। चहुं ओर से आने लगे, रोने के शब्द दुखदाई ।।
दौड धाय माता का दिल धड़के, सभी के मस्तक ठिनके । देख बिन कुमर हिंडोला. गिरी धरण मुर्भाय अंगरक्षक का भी दिल डोला ।। x पालना ( झूलना)
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