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रामायण
मेरा छौना कन्हैया किधर को गया,
मेरी वज्र की फटती यह छाती नही ॥१॥ कोई लाकर के देवो मुझे जैसो हो, ___उसकी सूरत मुझे नजर आती नहीं । अभी जाऊ जमी मे तुरत ही समा, पर यह पापिन भी मुझ को छिपाती नहीं ॥२॥
दोहा खबर लगी जब भूप को, आये भवन मंझार । दखित हृदय से इस तरह, बोले +गिरा उचार ।।
छन्द (जनक) क्या था और क्या हो गया, क्या माजरा नायाब है। रात है या दिन कही या, आ रहा कोई ख्वाब है। हैरत से हैरत हो रही, आश्चर्य यह आया मुझे। पुत्र कहां गायब हुवा, यहां पर नहीं पाया मुझे ॥ हे प्रभु ! मालूम नही, सुत को बला क्या ले गई। उल्टी है किस्मत आज यह, सुत की जुदाई हो गई ।। राज सम्पत्ति रत्न क्या, सब खाक तेरे बिन कुवर । पुत्र कहाँ छौना कहाँ कुछ भी नहीं लगती खबर ॥
दोहा नृप रानी प्रजा सभी, रोवे जारों जार। उधर कुवर को खोजते, पैदल फिरे सवार ।। जनक कहे रानी सुनो, अपने दिल को थाम ।
खोज हो रही पुत्र की, गिरी* गुहर अरु ग्राम ॥ +वाणी X स्वप्नम् *गुफा