________________
रावण का भविष्य
१६१
~
~
~
-
-
~
-
-
.
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
दोहा दशरथ को और जनक को, परभव देऊ पहुंचाय। उत्पत्ति होवे नहीं, बीज दग्ध हो जाय ॥
नाश करू दोनो का जाकर, झूठा इसे बनाऊगा । सब देऊ खटका मेट भ्रात का, तभी अन्न जल पाऊंगा। थे नारद जी वहां विद्यमान, सुन बात सभी मिथिला आये।।। और भाव विभीषण के नारद ने, जनक भूप को समझाये। फेर अयोध्या में आकर के, दशरथ को समझाया है। भयभीत हुआ यहां रघुवंशी, मिथिलेश वहां घबराया है । तब मन्त्री ने यह समझाया, तुम लिये यात्रा के जावो। हम ठीक सभी कुछ कर लेगे, पीछे का भय तुम मत खायो।
- गाना नम्बर ५१ समय को देख के सब कार्य करना ही मुनासिब है। धैर्य गंभीरता से, बात को जरना मुनासिब है ॥१॥ जलवायु बदलने को, जनक और आप कहीं जावे । भार मुझ ही जो कुछ है, सभी धरना मुनासिब है ॥२॥ करूंगा जो भी कुछ मैं वह, तुम्हे भी कह नहीं सकता। पंच परमेष्ठी का लेना, एक शरणा मुनासिब है ॥३॥ शुक्ल ले शरण जिनवर का, गुप्त यहां से निकल जावो । राजमोह मेष और सब कुछ, विसरना ही मुनासिब है ॥४॥
दोहा
भेष बदल कर चल दिये, छोड़ राज घर बार।
पीछे मन्त्री ने किया, अद्भुत एक विचार ।। लेपमयी तस्वीर एक, दशरथ की मूर्ति बनाई है। रंग आदि भर के सब ही, सिंहासन पर बैठाई है।